
वह कर्म कर क्या रहा है गीता में कहा गया है
कर्म करो फल की चिंता मत करोकर्म में क्या कर रहे हो इसके विषय में सोचना भी आवश्यक है ,
अन्यथा कई बार हम ऐसे कर्म करते जाते हैं जो ना चाहते हुए भी विष बन जाता हैं ।
जो दुशासन के साथ. दुर्योधन के साथ गुरु द्रोण के साथ हुआ , एक की मंशा उचित नहीं था एक का विवेक उचित नहीं था एक निष्पक्ष चुनाव व पक्ष उचित नहीं था!
जो इनके साथ हुआ वह आपके मेरे सब के साथ हो सकता हैकर्म के बारे में विचरण करना भी उतना ही उचित है कर्म की उचित प्रक्रिया यही है कि फल की चिंता मत करो!
यदि आपका कर्म शुभ है तो इसका फल आप ही को तो देगा ! सदैव कर्म करते हुए यह सोचिए कि आपके कारण आपके समाज को आपके परिवार को इस संसार को आपके आसपास के लोगों को किस दिशा में ले जाएगा !
यदि यह सब के लिए हितकारी है तो कर्म करते जाइए आप निश्चिंत रूप से फल की चिंता मत करिए राधे राधे 🙏